आदमी बुलबुला है पानी का
आदमी बुलबुला है पानी का, और पानी की बहती सतह पर, टूटता भी है, और डूबता भी है, फिर उभरता है, फिर से बहता है, न समंदर निगल सका इसको, वक्त की मौज पर सदा बहता; आदमी बुलबुला है पानी का! -गुलज़ार
हम ने माना के तगाफ़ुल ना करोगे, लेकिन खाक हो जायेंगे हम तुमको खबर होने तक - मिर्जा गालिब