संदेश

2008 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

आदमी बुलबुला है पानी का

आदमी बुलबुला है पानी का, और पानी की बहती सतह पर, टूटता भी है, और डूबता भी है, फिर उभरता है, फिर से बहता है, न समंदर निगल सका इसको, वक्त की मौज पर सदा बहता; आदमी बुलबुला है पानी का! -गुलज़ार