इतना सा ही है संसार
सबसे पहले मेरे घर का, अण्डे जैसा था आकार, तब मैं यही समझती थी बस, इतना सा ही है संसार । फिर मेरा घर बना घोसला, सूखे तिनको से तैयार, तब मैं यही समझती बस, इतना सा ही है संसार । फिर मैं निकल गयी साखों पर, हरी भरी थी जो सुकुमार, तब मैं यही समझती बस, इतना सा ही है संसार । आखिर जब में आसमान में, उड़ी दूर तक पंख पसार, तभी समझ में मेरी आया, बहुत बड़ा है यह संसार ! - अनजान