मैं नहीं आया तुम्हारे द्वार पथ ही मुड़ गया था । गति मिली, मैं चल पड़ा, पथ पर कहीं रुकना मना था राह अनदेखी, अजाना देश संगी अनसुना था । चाँद सूरज की तरह चलता, न जाना रात दिन है किस तरह हम-तुम गए मिल, आज भी कहना कठिन है । तन न आया माँगने अभिसार मन ही मन जुड़ गया था मैं नहीं आया तुम्हारे द्वार पथ ही मुड़ गया था ।। देख मेरे पंख चल, गतिमय लता भी लहलहाई पत्र आँचल में छिपाए मुख- कली भी मुस्कराई । एक क्षण को थम गए डैने, समझ विश्राम का पल पर प्रबल संघर्ष बनकर, आ गई आँधी सदल-बल । डाल झूमी, पर न टूटी, किंतु पंछी उड़ गया था मैं नहीं आया तुम्हारे द्वार पथ ही मुड़ गया था ।। - शिवमंगल सिंह सुमन
वे मुस्काते फूल नहीं जिनको आता है मुर्झाना, वे तारों के दीप नहीं जिनको भाता है बुझ जाना वे सूने से नयन,नहीं जिनमें बनते आंसू मोती, वह प्राणों की सेज,नही जिसमें बेसुध पीड़ा, सोती वे नीलम के मेघ नहीं जिनको है घुल जाने की चाह वह अनन्त रितुराज,नहीं जिसने देखी जाने की राह ऎसा तेरा लोक, वेदना नहीं,नहीं जिसमें अवसाद, जलना जाना नहीं नहीं जिसने जाना मिटने का स्वाद क्या अमरों का लोक मिलेगा तेरी करुणा का उपहार रहने दो हे देव अरे यह मेरे मिटने क अधिकार - महादेवी वर्मा
आदमी बुलबुला है पानी का, और पानी की बहती सतह पर, टूटता भी है, और डूबता भी है, फिर उभरता है, फिर से बहता है, न समंदर निगल सका इसको, वक्त की मौज पर सदा बहता; आदमी बुलबुला है पानी का! -गुलज़ार
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