पशेमानी

मैं ये सोच कर उस के दर से उठा था
के वो रोक लेगी मना लेगी मुझको
कदम ऐसे अंदाज से उठ रहे थे
के वो आवाज़ देकर बुला लेगी मुझको
हवाओं मे लहराता आता था दामन
के दामन पकड़ के बैठा लेगी मुझको

मगर उस ने रोका, ना मुझको मनाया
ना अवाज़ ही दी, ना वापस बुलाया
ना दामन ही पकड़ा, ना मुझको बिठाया
मैं आहिस्ता-आहिस्ता बढ़ता ही आया
यहाँ तक के उस से जुदा हो गया मैं

-कैफ़ी आज़मी

टिप्पणियाँ

  1. कैफ़ी साहब की बेहतरीन रचनाओं में से एक।
    यहां प्रस्तुत करने के लिए धन्यवाद

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  2. sach bin chaahe kisi se juda hona pade.. aur ye aas ki koi bulayega fir kahin se.. yun toot jaaye.. aur andaaz Kaifi Saahab k aho to kya kahane.. thnx...

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