हम उन्हे वो हमें भुला बैठे
दो गुनेह-गार ज़हर खा बैठे
हाल-ए-दिल कह के गम बढ़ा बैठे
तीर मारे थे तीर खा बैठे
आँधियो जाओ अब करो आराम
हम खुद अपना दीया बुझा बैठे
जी तो हल्का हुआ मगर यारों
रो कर लुफ़्त-ए-गम गवाँ बैठे
बे-सहारों का हौसला ही क्या
घर मे घबराये, दर पे आ बैठे
उठ के एक बे-वफ़ा ने दे दि जान
रह गये सरे बा-वफ़ा बैठे
जब से बिछड़े वो, मुस्कुराये ना हम
सबने छेड़ा तो लब हिला बैठे
हश्र का दिन अभी है दूर "खुमार"
आप क्यूं ज़हिदों मे जा बैठे
-खुमार बाराबंकवी
दो गुनेह-गार ज़हर खा बैठे
हाल-ए-दिल कह के गम बढ़ा बैठे
तीर मारे थे तीर खा बैठे
आँधियो जाओ अब करो आराम
हम खुद अपना दीया बुझा बैठे
जी तो हल्का हुआ मगर यारों
रो कर लुफ़्त-ए-गम गवाँ बैठे
बे-सहारों का हौसला ही क्या
घर मे घबराये, दर पे आ बैठे
उठ के एक बे-वफ़ा ने दे दि जान
रह गये सरे बा-वफ़ा बैठे
जब से बिछड़े वो, मुस्कुराये ना हम
सबने छेड़ा तो लब हिला बैठे
हश्र का दिन अभी है दूर "खुमार"
आप क्यूं ज़हिदों मे जा बैठे
-खुमार बाराबंकवी
टिप्पणियाँ
एक टिप्पणी भेजें