अफ़साने

खुशबू जैसे लोग मिले अफ़साने मे
एक पुराना खत खोला अनज़ाने मे

जाना किसका जिक्र है अफ़साने मे
दर्द जब मज़े लेता है जो दुहराने मे

शाम के साये बालिस्तो से नापे हैं
चाँद ने कितनी देर लगा दी आने मे

रात गुज़रते शायद थोड़ा वक्त लगे
ज़रा सी धूप दे उन्हे मेरे पैमाने में

दिल पर दस्तक देने ये कौन आया है
किसका आहट सुनता है वीराने मे ।

-गुलज़ार

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