तुम्हारी कब्र पर मैं
फ़ातेहा पढ़ने नही आया,

मुझे मालूम था, तुम मर नही सकते
तुम्हारी मौत की सच्ची खबर
जिसने उड़ाई थी, वो झूठा था,
वो तुम कब थे?
कोई सूखा हुआ पत्ता, हवा मे गिर के टूटा था ।

मेरी आँखे
तुम्हारी मंज़रो मे कैद है अब तक
मैं जो भी देखता हूँ, सोचता हूँ
वो, वही है
जो तुम्हारी नेक-नामी और बद-नामी की दुनिया थी ।

कहीं कुछ भी नहीं बदला,
तुम्हारे हाथ मेरी उंगलियों में सांस लेते हैं,
मैं लिखने के लिये जब भी कागज कलम उठाता हूं,
तुम्हे बैठा हुआ मैं अपनी कुर्सी में पाता हूं |

बदन में मेरे जितना भी लहू है,
वो तुम्हारी लगजिशों नाकामियों के साथ बहता है,
मेरी आवाज में छुपकर तुम्हारा जेहन रहता है,
मेरी बीमारियों में तुम मेरी लाचारियों में तुम |

तुम्हारी कब्र पर जिसने तुम्हारा नाम लिखा है,
वो झूठा है, वो झूठा है, वो झूठा है,
तुम्हारी कब्र में मैं दफन तुम मुझमें जिन्दा हो,
कभी फुरसत मिले तो फातहा पढनें चले आना |

-निदा फ़ालजी

"नीरज रोहिला" जी का बहुत बहुत धन्यवाद इस कृति को पूरा करने के लिये

टिप्पणियाँ

  1. हम जिस तहजीब से ताल्लुख रखते हैं उसमें बाप कभी नहीं मरता, हर बाप की मौत में बेटे की ही मौत होती है |

    लीजिये इस खूबसूरत नज्म को मैं पूरा कर देता हूं,

    कहीं कुछ भी नहीं बदला,
    तुम्हारे हाथ मेरी उंगलियों में सांस लेते हैं,
    मैं लिखने के लिये जब भी कागज कलम उठाता हूं,
    तुम्हे बैठा हुआ मैं अपनी कुर्सी में पाता हूं |

    बदन में मेरे जितना भी लहू है,
    वो तुम्हारी लगजिशों नाकामियों के साथ बहता है,
    मेरी आवाज में छुपकर तुम्हारा जेहन रहता है,
    मेरी बीमारियों में तुम मेरी लाचारियों में तुम |

    तुम्हारी कब्र पर जिसने तुम्हारा नाम लिखा है,
    वो झूठा है, वो झूठा है, वो झूठा है,
    तुम्हारी कब्र में मैं दफन तुम मुझमें जिन्दा हो,
    कभी फुरसत मिले तो फातहा पढनें चले आना |

    जवाब देंहटाएं
  2. ये पूरी नज्म निदा फाजली साहब की है |

    नज्म पूरा करने का ये अर्थ न लगाया जाये कि मैने खुद इसमें कुछ जोडा है |

    यदि किसी सज्जन को इस नज्म की एम. पी. थ्री. फाईल की आवश्यकता हो, तो मुझसे सम्पर्क स्थापित करें (nrohilla@gmail.com)

    साभार,
    नीरज रोहिल्ला

    जवाब देंहटाएं
  3. वाह भाई, निदा फाजली साहब की नज्म को पेश करने और नीरज को पूरा करने के लिये बहुत साधुवाद.

    जवाब देंहटाएं
  4. निदा फाज़ली की ये नज़्म हमेशा से बहुत प्रिय रही है । शुक्रिया एक बार और पढवाने के लिये

    जवाब देंहटाएं

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