गुनाह

सब्र हर बार इख्तियार किया
हम से होता नही, हज़ार किया

आदतन तुमने कर लिये वादे
आदतन हमने भी ऐतबार किया

हमने अक्सर तुम्हारी राहों मे
रुक के अपना ही इन्तज़ार किया

फिर ना मांगेगे ज़िन्दगी अब
ये गुनाह हमने एक बार किया

-गुलज़ार

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